Hindi Quran | कुरान पढ़ो

70|1|एक माँगनेवाले ने घटित होनेवाली यातना माँगी,
70|2|जो इनकार करनेवालो के लिए होगी, उसे कोई टालनेवाला नहीं,
70|3|वह अल्लाह की ओर से होगी, जो चढ़ाव के सोपानों का स्वामी है
70|4|फ़रिश्ते और रूह (जिबरील) उसकी ओर चढ़ते है, उस दिन में जिसकी अवधि पचास हज़ार वर्ष है
70|5|अतः धैर्य से काम लो, उत्तम धैर्य
70|6|वे उसे बहुत दूर देख रहे है,
70|7|किन्तु हम उसे निकट देख रहे है
70|8|जिस दिन आकाश तेल की तलछट जैसा काला हो जाएगा,
70|9|और पर्वत रंग-बिरंगे ऊन के सदृश हो जाएँगे
70|10|कोई मित्र किसी मित्र को न पूछेगा,
70|11|हालाँकि वे एक-दूसरे को दिखाए जाएँगे। अपराधी चाहेगा कि किसी प्रकार वह उस दिन की यातना से छूटने के लिए अपने बेटों,
70|12|अपनी पत्नी , अपने भाई
70|13|और अपने उस परिवार को जो उसको आश्रय देता है,
70|14|और उन सभी लोगों को जो धरती में रहते है, फ़िदया (मुक्ति-प्रतिदान) के रूप में दे डाले फिर वह उसको छुटकारा दिला दे
70|15|कदापि नहीं! वह लपट मारती हुई आग है,
70|16|जो मांस और त्वचा को चाट जाएगी,
70|17|उस व्यक्ति को बुलाती है जिसने पीठ फेरी और मुँह मोड़ा,
70|18|और (धन) एकत्र किया और सैंत कर रखा
70|19|निस्संदेह मनुष्य अधीर पैदा हुआ है
70|20|जि उसे तकलीफ़ पहुँचती है तो घबरा उठता है,
70|21|किन्तु जब उसे सम्पन्नता प्राप्त होती ही तो वह कृपणता दिखाता है
70|22|किन्तु नमाज़ अदा करनेवालों की बात और है,
70|23|जो अपनी नमाज़ पर सदैव जमें रहते है,
70|24|और जिनके मालों में
70|25|माँगनेवालों और वंचित का एक ज्ञात और निश्चित हक़ होता है,
70|26|जो बदले के दिन को सत्य मानते है,
70|27|जो अपने रब की यातना से डरते है –
70|28|उनके रब की यातना है ही ऐसी जिससे निश्चिन्त न रहा जाए –
70|29|जो अपने गुप्तांगों की रक्षा करते है।
70|30|अपनी पत्नि यों या जो उनकी मिल्क में हो उनके अतिरिक्त दूसरों से तो इस बात पर उनकी कोई भर्त्सना नही। –
70|31|किन्तु जिस किसी ने इसके अतिरिक्त कुछ और चाहा तो ऐसे ही लोग सीमा का उल्लंघन करनेवाले है।-
70|32|जो अपने पास रखी गई अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह करते है,
70|33|जो अपनी गवाहियों पर क़़ायम रहते है,
70|34|और जो अपनी नमाज़ की रक्षा करते है
70|35|वही लोग जन्नतों में सम्मानपूर्वक रहेंगे
70|36|फिर उन इनकार करनेवालो को क्या हुआ है कि वे तुम्हारी ओर दौड़े चले आ रहे है?
70|37|दाएँ और बाएँ से गिरोह के गिरोह
70|38|क्या उनमें से प्रत्येक व्यक्ति इसकी लालसा रखता है कि वह अनुकम्पा से परिपूर्ण जन्नत में प्रविष्ट हो?
70|39|कदापि नहीं, हमने उन्हें उस चीज़ से पैदा किया है, जिसे वे भली-भाँति जानते है
70|40|अतः कुछ नहीं, मैं क़सम खाता हूँ पूर्वों और पश्चिमों के रब की, हमे इसकी सामर्थ्य प्राप्त है
70|41|कि उनकी उनसे अच्छे ले आएँ और हम पिछड़ जानेवाले नहीं है
70|42|अतः उन्हें छोड़ो कि वे व्यर्थ बातों में पड़े रहें और खेलते रहे, यहाँ तक कि वे अपने उस दिन से मिलें, जिसका उनसे वादा किया जा रहा है,
70|43|जिस दिन वे क़ब्रों से तेज़ी के साथ निकलेंगे जैसे किसी निशान की ओर दौड़े जा रहे है,
70|44|उनकी निगाहें झुकी होंगी, ज़िल्लत उनपर छा रही होगी। यह है वह दिन जिससे वह डराए जाते रहे है

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