100|1|साक्षी है जो हाँफते-फुँकार मारते हुए दौड़ते है,
100|2|फिर ठोकरों से चिनगारियाँ निकालते है,
100|3|फिर सुबह सवेरे धावा मारते होते है,
100|4|उसमें उठाया उन्होंने गर्द-गुबार
100|5|और इसी हाल में वे दल में जा घुसे
100|6|निस्संदेह मनुष्य अपने रब का बड़ा अकृतज्ञ हैं,
100|7|और निश्चय ही वह स्वयं इसपर गवाह है!
100|8|और निश्चय ही वह धन के मोह में बड़ा दृढ़ है
100|9|तो क्या वह जानता नहीं जब उगवला लिया जाएगा तो क़ब्रों में है
100|10|और स्पष्ट अनावृत्त कर दिया जाएगा तो कुछ सीनों में है
100|11|निस्संदेह उनका रब उस दिन उनकी पूरी ख़बर रखता होगा
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