Hindi Quran | कुरान पढ़ो

54|1|वह घड़ी निकट और लगी और चाँद फट गया;
54|2|किन्तु हाल यह है कि यदि वे कोई निशानी देख भी लें तो टाल जाएँगे और कहेंगे, “यह तो जादू है, पहले से चला आ रहा है!”
54|3|उन्होंने झुठलाया और अपनी इच्छाओं का अनुसरण किया; किन्तु हर मामले के लिए एक नियत अवधि है।
54|4|उनके पास अतीत को ऐसी खबरें आ चुकी है, जिनमें ताड़ना अर्थात पूर्णतः तत्वदर्शीता है।
54|5|किन्तु चेतावनियाँ उनके कुछ काम नहीं आ रही है! –
54|6|अतः उनसे रुख़ फेर लो – जिस दिन पुकारनेवाला एक अत्यन्त अप्रिय चीज़ की ओर पुकारेगा;
54|7|वे अपनी झुकी हुई निगाहों के साथ अपनी क्रबों से निकल रहे होंगे, मानो वे बिखरी हुई टिड्डियाँ है;
54|8|दौड़ पड़ने को पुकारनेवाले की ओर। इनकार करनेवाले कहेंगे, “यह तो एक कठिन दिन है!”
54|9|उनसे पहले नूह की क़ौम ने भी झुठलाया। उन्होंने हमारे बन्दे को झूठा ठहराया और कहा, “यह तो दीवाना है!” और वह बुरी तरह झिड़का गया
54|10|अन्त में उसने अपने रब को पुकारा कि “मैं दबा हुआ हूँ। अब तू बदला ले।”
54|11|तब हमने मूसलाधार बरसते हुए पानी से आकाश के द्वार खोल दिए;
54|12|और धरती को प्रवाहित स्रोतों में परिवर्तित कर दिया, और सारा पानी उस काम के लिए मिल गया जो नियत हो चुका था
54|13|और हमने उसे एक तख़्तों और कीलोंवाली (नौका) पर सवार किया,
54|14|जो हमारी निगाहों के सामने चल रही थी – यह बदला था उस व्यक्ति के लिए जिसकी क़द्र नहीं की गई।
54|15|हमने उसे एक निशानी बनाकर छोड़ दिया; फिर क्या कोई नसीहत हासिल करनेवाला?
54|16|फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे?
54|17|और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत करनेवाला?
54|18|आद ने भी झुठलाया, फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरा डराना?
54|19|निश्चय ही हमने एक निरन्तर अशुभ दिन में तेज़ प्रचंड ठंडी हवा भेजी, उसे उनपर मुसल्लत कर दिया, तो वह लोगों को उखाड़ फेंक रही थी
54|20|मानो वे उखड़े खजूर के तने हो
54|21|फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे?
54|22|और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला?
54|23|समूद ने चेतावनियों को झुठलाया;
54|24|और कहने लगे, “एक अकेला आदमी, जो हम ही में से है, क्या हम उसके पीछे चलेंगे? तब तो वास्तव में हम गुमराही और दीवानापन में पड़ गए!
54|25|”क्या हमारे बीच उसी पर अनुस्मृति उतारी है? नहीं, बल्कि वह तो परले दरजे का झूठा, बड़ा आत्मश्लाघी है।”
54|26|”कल को ही वे जान लेंगे कि कौन परले दरजे का झूठा, बड़ा आत्मश्लाघी है।
54|27|हम ऊँटनी को उनके लिए परीक्षा के रूप में भेज रहे है। अतः तुम उन्हें देखते जाओ और धैर्य से काम लो
54|28|”और उन्हें सूचित कर दो कि पानी उनके बीच बाँट दिया गया है। हर एक पीने की बारी पर बारीवाला उपस्थित होगा।”
54|29|अन्ततः उन्होंने अपने साथी को पुकारा, तो उसने ज़िम्मा लिया फिर उसने उसकी कूचें काट दी
54|30|फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे?
54|31|हमने उनपर एक धमाका छोड़ा, फिर वे बाड़ लगानेवाले की रौंदी हुई बाड़ की तरह चूरा होकर रह गए
54|32|हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या कोई नसीहत हासिल करनेवाला?
54|33|लूत की क़ौम ने भी चेतावनियों को झुठलाया
54|34|हमने लूत के घरवालों के सिवा उनपर पथराव करनेवाली तेज़ वायु भेजी।
54|35|हमने अपनी विशेष अनुकम्पा से प्रातःकाल उन्हें बचा लिया। हम इसी तरह उस व्यक्ति को बदला देते है जो कृतज्ञता दिखाए
54|36|उसने जो उन्हें हमारी पकड़ से सावधान कर दिया था। किन्तु वे चेतावनियों के विषय में संदेह करते रहे
54|37|उन्होंने उसे फुसलाकर उसके पास से उसके अतिथियों को बलाना चाहा। अन्ततः हमने उसकी आँखें मेट दीं, “लो, अब चखो मज़ा मेरी यातना और चेतावनियों का!”
54|38|सुबह सवेरे ही एक अटल यातना उनपर आ पहुँची,
54|39|”लो, अब चखो मज़ा मेरी यातना और चेतावनियों का!”
54|40|और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला?
54|41|और फ़िरऔनियों के पास चेतावनियाँ आई;
54|42|उन्होंने हमारी सारी निशानियों को झुठला दिया। अन्ततः हमने उन्हें पकड़ लिया, जिस प्रकार एक ज़बरदस्त प्रभुत्वशाली पकड़ता है
54|43|क्या तुम्हारे काफ़िर कुछ उन लोगो से अच्छे है या किताबों में तुम्हारे लिए कोई छुटकारा लिखा हुआ है?
54|44|या वे कहते है, “और हम मुक़ाबले की शक्ति रखनेवाले एक जत्था है?”
54|45|शीघ्र ही वह जत्था पराजित होकर रहेगा और वे पीठ दिखा जाएँगे
54|46|नहीं, बल्कि वह घड़ी है, जिसका समय उनके लिए नियत है और वह बड़ी आपदावाली और कटु घड़ी है!
54|47|निस्संदेह, अपराधी लोग गुमराही और दीवानेपन में पड़े हुए है
54|48|जिस दिन वे अपने मुँह के बल आग में घसीटे जाएँगे, “चखो मज़ा आग की लपट का!”
54|49|निश्चय ही हमने हर चीज़ एक अंदाज़े के साथ पैदा की है
54|50|और हमारा आदेश (और काम) तो बस एक दम की बात होती है जैसे आँख का झपकना
54|51|और हम तुम्हारे जैसे लोगों को विनष्ट कर चुके है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला?
54|52|जो कुछ उन्होंने किया है, वह पन्नों में अंकित है
54|53|और हर छोटी और बड़ी चीज़ लिखित है
54|54|निश्चय ही डर रखनेवाले बाग़ो और नहरों के बीच होंगे,
54|55|प्रतिष्ठित स्थान पर, प्रभुत्वशाली सम्राट के निकट

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